बीच-बजार
खड़ा कबीरा बीच-बजार, ना कोई बैर ना कोई प्यार
गुरुवार, सितंबर 22, 2005
उम्र भर का साथ था
अजनबी फिर भी रहे.
माशूका है मौत लेकिन
ज़िंदगी फिर भी रहे.
आंसुओं की हो झड़ी पर
एक हंसी फिर भी रहे.
रात-दिन तुझको मैं देखूं
तिश्नगी फिर भी रहे.
- पराग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें