मंगलवार, अक्तूबर 21, 2008

मीडिया मेहरबान तो राज पहलवान

इसे हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की मुर्खता कहा जाए या फिर मजबूरी।जो राज ठाकरे दिन-रात हिन्दी-अंग्रेजी टीवी चैनलों को गालियां देते हैं,
बेइज्जत करते हैं, वे ही चैनल राज की गिरफ्तारी की ख़बर दिन भर
दिखाकर राज ठाकरे को मुफ्त की पब्लिसिटी दे रहे हैं।
यह क्या राज की चालाकी नहीं है? उनकी छोटी-सी पार्टी, जिसकी हैसियत
महाराष्ट्र में आज तक छुट-पुट सीटों को छोड़कर कहीं साबित नहीं हो पायी
है, उसे और खुद को पूरे देश में उन्होंने इन्हीं चैनलों का उपयोग करके
प्रख्यात कर दिया है। चाहे उनका रवैया बदनाम हुए तो क्या नाम तो होगा
वाला रहा हो।
जिस राज्य में राज के आदर्श बाल ठाकरे कभी अपने अकेले के दम पर
अपनी पार्टी शिवसेना को सत्ता में नहीं ला पाए, उस राज्य में अपने चाचा
की नकल करने वाले राज ठाकरे सर्वेसर्वा हो गए हैं, ऐसी इमेज टीवी चैनल
बना रहे हैं। इन टीवी चैनलों को देखकर शायद पूरे देश में लोग यही मानते
या समझते हैं कि राज की मर्जी से महाराष्ट्र का हर पत्ता हिलता है और वे
राज्य में कानून और सरकार से भी बड़े हो गए हैं।
उत्तर भारतीयों के खिलाफ कुछ माह पहले एक आन्दोलन छेड़ा गया। मुंबई
और कुछ अन्य जगहों पर कुछ लोगों के साथ मारपीट की गई। कुछ
तोड़फोड़ की गई। उसी की तस्वीरें बार-बार दिखाकर हिन्दी-अंग्रेजी मीडिया
ने राज को हीरो बना दिया। लेकिन इसके पीछे का सच क्या है? पूरे देश में
छुटपुट बातों को लेकर दंगा होने की घटनाएं आये दिन होती रहती हैं। कई
बार उसमें अनेक लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है। लेकिन
महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ छिड़े मनसे के आंदोलन में एक व्यक्ति
की मौत हुई और वह भी मराठी व्यक्ति की। उस आंदोलन के दौरान डरकर
कुछ लोग बिहार या उत्तर प्रदेश में लौट गए हों मगर क्या महाराष्ट्र उत्तर
भारतीय लोगों से खाली हो गया?
वास्तविकता यह है कि स्थिति में आज भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा है।
महाराष्ट्र के अधिकांश उद्योग उत्तर भारतीय मजदूरों और कर्मचारियों की
सहायता से ही चल रहे हैं।
उस समय मराठी लोगों के रोजगार के नाम पर हंगामा करने वाले राज या
उनकी पार्टी ने पूरे देश में चर्चा पाने का अपना मकसद पूरा होने के बाद
बड़े सुविधाजनक ढंग से रोजगार का मुद्दा छोड़ दिया और दुकानों के
साइनबोर्ड मराठी में किये जाने का नया मुद्दा छेड़ दिया। उनकी अपेक्षा के
अनुरूप इस बार भी मीडिया ने इसे जमकर उछाला और अपना लाभ देखने
की आदत वाले कुछ दुकानदारों ने तोड़फोड़ के डर से मराठी में अपने
साइनबोर्ड बनवा लिये। मगर क्या अंग्रेजी के साइनबोर्ड महाराष्ट्र से खत्म हो
गए? जिन्हें कोई गलतफहमी हो, उन्हें एक बार महाराष्ट्र का दौरा कर लेना
चाहिए।
मीडिया द्वारा बनायी गयी इस इमेज का परिणाम था कि जेट एयरवेज से
निकाले गये वे कर्मचारी, जिन्हें न राज ठाकरे की नीतियों में आस्था है न
तरीकों में, उनकी शरण में जा पड़े। प्रचार के इस बेहतरीन मौका का राज
ने भरपूर फायदा उठाया। नरेश गोयल भी शरणागत हुए। राज मसीहा हो
गए।
और गरम लोहे पर चोट करने के सिद्धांत के अनुरूप रेलवे में भरती के लिए
होने वाली परीक्षा के दौरान मारपीट का अपना पुराना हथियार अपनाकर
राज नये सिरे से चर्चा में आ गए। मीडिया हर बार की तरह इस बार भी
राज के मुफ्त प्रचार में जुट गया है। हर बार राज के सामने शरणागत
होकर उन्हें बाल ठाकरे के कद का नेता बनाने और इस बहाने उद्धव ठाकरे
को मात देने के प्रयास में लगी राज्य सरकार ने इस बार उन्हें गिरफ्तार तो
कर लिया है मगर उनके खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही हो पाएगी, इसकी
उम्मीद राजनीति के गिरते हुए स्तर को देखते हुए कम ही है।
मीडिया की कृपा और राज्य सरकार के सहयोगात्मक रवैये के चलते पूरे देश
में राज ठाकरे की छवि चाहे महाराष्ट्र के भाग्यविधाता की बन गयी हो मगर
राज्य की आम जनता के बीच उनकी कितनी पैठ है, इसका पता आने वाले
चुनावों में पूरे देश को लग ही जाएगा। तब तक आम लोग परेशानी उठाते
रहेंगे। क्योंकि उन्हें तो इसकी आदत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें