गुरुवार, दिसंबर 31, 2009

नया साल २०१० मुबारक

काश कि ऐसा हो....

पृथ्वी को

ओढ़ाएं फिर

हरी ओढ़नी,

शुद्ध हवा में

ले पाएं हम

खुलकर साँस,

गाँव, शहर

और कारखाने के

मैलों से

हो मुक्त नदी

पूरी हो जाए

मन की आस।

पशु हमारे

मन में नहीं

जंगल में पनपे,

सत्य, स्वदेशी

स्वाभिमान से

भारत माँ का

माथा दमके।

दूर गुलामी के

हो जाएं

संस्कार हमारे,

धर्म, भाषा

जाति, जगह के

नष्ट करें

हम भेद ये सारे।

भ्रष्ट, व्यभिचारी

अपराधी को कभी

न मिले प्रतिष्ठा,

क्षुद्र स्वार्थ

हो परे

देश के प्रति सदा

हो मन में निष्ठा।

बापूजी के भारत को

मिल के हम

साकार करें,

खुद के लिए

जो चाहें

दूजे से भी वह

व्यवहार करें।

जिस दिन मन में

घर कर लेंगी

सत्य, अहिंसा और दया,

सच कहता हूँ

केवल उस दिन

होगा शुरू

एक साल नया।